हिम न्यूज़,करसोग-वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया है। किसान पारम्परिक मोटे अनाज की खेती को अपना कर अधिक आय अर्जित कर सकते हैं। मोटा अनाज जिसे पौष्टिक या पोषक अनाज भी कहा जाता है की खेती करने के लिए पानी की कम आवश्यकता होती है।

लोगों का ध्यान किया आकर्षित
प्रदेश के मंडी जिला के करसोग क्षेत्र के नाज गांव के एक 10वीं पास किसान नेकराम शर्मा ने पारम्परिक मोटे अनाज की खेती को अपना कर देशभर में पदमश्री अवार्ड के लिए अपनी जगह बना प्रदेश व क्षेत्र का नाम रोशन करने के साथ ही देशभर में एक मिशाल कायम की है। इन्होंने मोटे अनाज की खेती की ओर लोगों का ध्यान भी आकर्षित किया है।
फाइवर होता है पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध
पारम्परिक मोटे अनाज में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक फाइवर पर्याप्त मात्रा में होने के कारण जहां मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है वहीं मोटे अनाज के सेवन से अनेक बीमारियों से भी छुटकारा पाया जा सकता है। यह अनाज शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके सेवन से ब्लड़ प्रैशर में सुधार, मधुमेह, एनीमिया नियंत्रण, कब्ज की समस्या, दस्त रोग, मधुमेह, गुर्दे आदि की बीमारियों से बचा जा सकता है।
प्राकृतिक खेती को अपनाना समय की मांग
कृषि क्षेत्र में पदमश्री अवार्ड के लिए देशभर में अपनी जगह बनाकर हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन करने वाले किसान नेकराम शर्मा मोटे अनाज की खेती को लेकर बताते है कि रसायनिक खेती को कम करते हुए प्राकृतिक खेती को अपनाना वर्तमान समय की जरूरत है। मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देेना स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है। मोटे अनाज जैसे कोदरा, कांगनी, चैलाई, साँवा, ज्वार, बिथू, भरेस आदि की खेती से अच्छी आय भी अर्जित की जा सकती है।
स्वस्थ शरीर सबसे बड़ी आय
इनका कहना है कि मोटे अनाज के सेवन से सबसे बड़ी आय हमें हमारें स्वस्थ शरीर के रूप में मिलती है। इसके सेवन से हम अपने शरीर को अनेक बीमारियों से बचा कर दवाईयों पर होने वाले खर्च को भी कम कर सकते है। नेकराम शर्मा का कहना है कि मोटे अनाज की बाजार में अत्यधिक मांग रहती है और मोटे अनाज के बाजार में दाम भी अच्छे मिलते है।
गांव के स्वतंत्रता सेनानी की प्रेरणा से अपनाई यह खेती
नेकराम शर्मा बताते है कि उनका पूरा परिवार वर्षो से खेती-बाड़ी से जुड़ा हुआ है। वर्ष 1982 से ही वह गांव में नगदी फसलें उगा रहे है। गांव के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कमला राम शर्मा की प्रेरणा से उन्होंने जैविक खेती, जिसे वर्तमान में प्राकृतिक खेती कहा जाता है को अपनाया और अपनी नगदीं फसलों में कीटनाश्क दवाईयों व रसायनिक खादों आदि का प्रयोग बंद कर खेती-बाड़ी के लिए खेतों में गाय के गोबर का प्रयोग करना आरम्भ किया। वर्ष 1996 में उन्होंने नौणी विश्वविद्यालय सोलन के एक परिचित डाॅ. जेपी उपाध्याय के सहयोग से बैगलौर के धारवाड़ स्थित कृषि विश्वविद्यालय में कुछ समय के लिए जैविक खेती की बारीकियां सीखी और वापस आ कर उन्हें अपने खेतों में अप्लाई करना शुरू किया, जिसके परिणाम स्वरूप ही आज उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।
दिया है अदभुत अनाज का नाम
नेकराम शर्मा ने अपने खेतों में उगाए जाने वाले मोटे अनाज को अदभुत अनाज का नाम दिया है। नेकराम शर्मा कोदरें की चाय भी बनाते है, जिसे इन्होंने अदभुत चाय का नाम दिया है। इस चाय को बनाने के लिए इन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को भी प्रशिक्षित किया है ताकि घर पर आने वाले मेहमानों को भी स्वास्थ्य बर्धक कोदरें की चाय यानि अदभुत चाय पीलाई जा सके। इनका कहना है कि वह 8 से 10 प्रकार के अनाज एक खेत में, एक साथ उगा रहे है, इनमें कोदरा, कांगनी, चैलाई, साँवा, ज्वार, बिथू, भरेस आदि शामिल है इनके अलाव उसी खेत में आम व अनार का बगीचा भी लगाया है। जिसके बीच में यह मोटे अनाज की खेती की जाती है।
9 से 10 हजार लोगों को जोड़ चुके है इस खेती से
इनका कहना है कि मोटा अनाज ही मूल अनाज है। रसायनिक खेती को छोड़ कर हमें उत्तम स्वास्थ्य के लिए इसे अपनाना होगा, तभी हम स्वस्थ्य रह सकते है। इस अनाज को उगाने या प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भी बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे है। नेक राम शर्मा करसोग क्षेत्र में ही अब तक 9 से 10 हजार लोगों को प्राकृतिक खेती यानि मोटे अनाज की खेती से जोड़ चुके है। उनका कहना है कि पदमश्री पुरस्कार के बाद उनकी नैतिक जिम्मेवारी और ज्यादा बढ़ जाती है इसलिए उनका दायित्व है कि इस क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा कार्य किया जाए।
बनाए जा सकते है यह पकवान
मोटे अनाज से रागी के लड्डू, रागी प्याज चपाती, साँवा की खीर, काँगनी खीर, कोदो पुलाव इत्यादि पकवान तैयार करने के साथ-साथ कोदा चाय भी बनाई जा सकती है। राज्य सरकार के प्रयासों के सामने आए सार्थक परिणाम प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा कृषि विभाग के माध्यम से बीज सहित अन्य सामग्री पर उपदान भी प्रदान किया जा रहा है। जिसके अब सार्थक परिणाम सामने आने लगे है। नेकराम शर्मा का कहना है कि प्रदेश के सभी किसान भाईयों को रसायनिक खेती को छोड़ कर प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे तभी हम जहर मुक्त खेती के सपने को साकार कर सकते है।