हिम न्यूज़ धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पंजाबी एवं डोगरी विभाग की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की आत्मकथा “निज पथ का अविचल पंथी” का पंजाबी भाषा में किए गए अनुवाद पुस्तक का विमोचन धौलाधार परिसर के सभागार में किया गया। इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ साहित्यकार शांता कुमार, विशिष्ट अतिथि लोकसभा सांसद डॉ राजीव भारद्वाज, मुख्य वक्ता केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हरमोहिंदर सिंह बेदी मौजूद रहे।
वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल ने की। विशेष अतिथि के तौर पर वाई.एस.पी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर चंदेल और विशेष उपस्थिति कुलसचिव प्रो. नरेंद्र कुमार सांख्यान और अधिष्ठाता अकादमिक प्रो. प्रदीप कुमार की रही। संगोष्ठी के संयोजक एवं पुस्तक के अनुवादक डॉ नरेश कुमार, डॉ हरजिंदर सिंह और सहसंयोजक डॉ नरेंद्र पांडे और डा. प्रीति सिंह मौजूद रहे।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. बंसल ने कहा कि शांता कुमार जी ने अंत्योदय योजना जैसी जनकल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की, जो आज आत्मनिर्भर और विकसित भारत की नींव मानी जाती हैं। उनका विश्वास है कि “समाज को केवल सिद्धांत आधारित राजनीति से ही बदला जा सकता है, छल कपट से नहीं।” उनकी आत्मकथा “निज पथ का अविचल पंथी” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। पुस्तक का पंजाबी अनुवाद विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है। शांता कुमार जी की विचारधारा में स्वामी विवेकानंद और अटल बिहारी वाजपेयी के सिद्धांतों की झलक मिलती है। वे युवाओं को प्रेरित करते हैं कि वे अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदारी करें।
वहीं कुलाधिपति प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने भी पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के जीवन को युवाओं के लिए प्रेरणादायक बताया। उन्होंने कहा कि अब पंजाबी भाषा में उनकी जीवनी उपलब्ध होगी यह लोगों के लिए सौभाग्य की बात है। इसके लिए उन्होंने अनुवादक डा. नरेश को बधाई दी। मुख्य अतिथि शांता कुमार ने अपने उद्बोधन में गीता और स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को अपने जीवन का मार्गदर्शक बताया।
उन्होंने कहा कि स्वीकार में चमत्कार है। जब जीवन में कठिनाइयाँ आईं, तब गीता ने यह सिखाया कि केवल अपने कर्तव्य पर ध्यान दो।” उनका राजनीतिक जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने नैतिक मूल्यों के लिए पद त्याग दिया, यह कहते हुए कि “मैं अपने ज़िंदा मांस का व्यापारी नहीं हूं। सत्ता जा सकती है, पर सत्य नहीं।” राजनीति में 60 वर्षों का अनुभव रहा, लेकिन कभी भी भ्रष्टाचार या सत्तालोलुपता का मार्ग नहीं अपनाया। उन्होंने जोर देकर कहा कि “आज की राजनीति मूल्यहीन होती जा रही है — इसे रोकना देश की सबसे बड़ी आवश्यकता है।” इस आत्मकथा में उनके किशोरावस्था में जेल यात्रा, राष्ट्रसंघ में भारत का प्रतिनिधित्व, हिमाचल प्रदेश में अंत्योदय योजना की शुरुआत, और निजी क्षेत्र के सहयोग से बिजली परियोजनाएं शुरू करने जैसे प्रेरक प्रसंगों का समावेश है।
उन्होंने अपनी धर्मपत्नी और परिवार के प्रति भी आभार जताया, जिन्होंने आत्मकथा लेखन में पूर्ण सहयोग दिया। उन्होंने कहा कि “अगर किसी ने दुनिया के सबसे खुश लोगों की सूची बनाई हो, तो सबसे ऊपर मेरा नाम होगा।” वहीं वाई.एस.पी विश्वविद्यालय के कुलपति राजेश्वर चंदेल ने कहा कि हम सबके प्रेरणा पुंज शांता कुमार का जीवन उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो आज की राजनीति में दुर्लभ होते जा रहे हैं। उनका संयम, समर्पण और सादगी युवाओं के लिए आदर्श है।”
उन्होंने शांता कुमार से हुई पहली मुलाकात, उनके छात्र जीवन की प्रेरणाएँ और विभिन्न आंदोलनों में उनका नेतृत्व भावपूर्ण रूप में साझा किया। उन्होंने कहा कि शांता जी से हमने सीखा कि संघर्ष केवल विरोध नहीं, बल्कि संस्था, समाज और देश के लिए आचरण की मर्यादा में रहकर किया जाए।” वहीं लोकसभा सांसद डा. राजीव भारद्वाज ने कहा कि शांता कुमार जी केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि ‘राजऋषि’ हैं, जिनसे हमने राजनीति ही नहीं, समाजसेवा, प्रतिबद्धता और जीवन के मूल्य सीखे हैं। उनके साथ 42 वर्षों का सानिध्य मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। उन्होंने कहा कि मैं अर्जुन बनकर दीक्षा तो नहीं ले सका, लेकिन एकलव्य की तरह दूर से देखकर, उनके मार्ग का अनुसरण करने का प्रयास अवश्य किया है। इस मौके पर पंजाबी में अनुवाद की गई पुस्तक का भी विमोचन किया गया। अंत में अधिष्ठाता अकादमिक प्रो. प्रदीप ने सभी का आभार जताया।