संस्कृत व्याकरण की सरल पुस्तकों का प्रकाशन करवाएगा विश्वविद्यालय : प्रो. बंसल

हिम न्यूज़ धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से सन्ध्यनुप्रयोग कार्यशाला सन्धियों अनुप्रयोगात्मक पञ्च दिवसीय कार्यशाला का समापन धौलाधार परिसर एक में हुआ । इस समापन समारोह में बतौर मुख्यातिथि प्रो.सत प्रकाश बंसल, सारस्वत अतिथि के रूप में प्रो. प्रदीप कुमार अधिष्ठाता अकादमिक, विशिष्ठ अतिथि के रूप में प्रो. रोशन लाल शर्मा मौजूद रहे। वहीं कार्यशाला में दोनों विषय विशेषज्ञ सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप तथा डॉ. यजकृष्ण भी उपस्थित रहे । समापन कार्यक्रम के मंच संचालन का दायित्व डॉ. ना. वैति सुब्रह्मणियन ने निभाया । दीप प्रज्जवलन के साथ कार्यक्रम का आगाज हुआ।विभागाध्यक्ष प्रो. योगेन्द्रकुमार ने सभी का स्वागत किया। कार्यशाला के संयोजक प्रो. बृहस्पति मिश्रा रहे।

मुख्यातिथि का सम्मान विभागाध्यक्ष प्रो. योगेंद्र कुमार द्वारा किया । वहीं सारस्वतातिथि प्रो. प्रदीप कुमार का सम्मान प्रो. बृहस्पति मिश्रा ने, विशिष्ट अतिथि प्रो. रोशन लाल शर्मा का सम्मान डॉ. रणजीत कुमार ने, विषय विशेषज्ञ विद्वान् जयकृष्ण शर्मा का सम्मान कार्यशाला की सहसंयोजिका डॉ. अर्चना द्वारा और समाजिक कार्यकर्ता प्रताप का सम्मान प्राध्यापक डॉ. विवेक शर्मा ने किया।

सारस्वत अतिथि प्रो. प्रदीप कुमार ने कहा कि संस्कृत भाषा का व्याकरण बहुत ही दृढ और उन्नत है । एकाकी एकांकी, जैसे शब्दों में व्याकरण के दृष्टि से शब्द के अर्थ को बदल देने वाले मुख्य व्याकरण विषयों के बारे में बताते हुए, इसी तरह व्याकरण में सन्धि विषयों को अभ्यास के रूप में जानने के लिए आयोजित पञ्च दिनात्मक अनुप्रयोगात्मक कार्यशाला का सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के लिए शुभकामनाएँ दिए ।

इस मौके पर बतौर मुख्यातिथि कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल इस कार्यशाला के सफल आयोजन के लिए संस्कृत विभाग को बधाई दी और आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने हेतु उचित दिशा-निर्देश भी प्रदान किए। उन्होंने स्पष्ट रूप से विभाग के सभी प्राध्यापकों से आग्रह किया कि वह संस्कृत एवं AI के मध्य समन्वय स्थापित करने हेतु कार्य करें । जो भी संस्कृत भाषा की दृष्टि से उपयोग करने योग्य तकनीक या एप्लीकेशंस हैं, उनका अधिकाधिक प्रयोग करना विद्यार्थियों को सिखाएं । इसी के साथ उन्होंने सर्व समाज के लिए उपयोगी संस्कृत भाषा और व्याकरण से संबंधित पुस्तकों की लेखन एवं विश्वविद्यालय द्वारा उनके प्रकाशन के लिए उचित निर्देश प्रदान किए ।

उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा जिस प्रकार से भी समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो ऐसा उपाय संस्कृत विभाग के द्वारा किया जाना चाहिए, यह भाषा भारतीय ज्ञान परंपरा की मूल स्रोत है । अतः संस्कृत विभाग के विद्यार्थियों तथा प्राध्यापकों को विशेष परिश्रम करने की आवश्यकता है । जिससे हमारी प्राचीन ज्ञान निधि समाज के सामने आ सके । अन्त में कुलपति ने भारतीय ज्ञान परंपरा की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए विशेष परिश्रम करने हेतु सभी को प्रेरित किया।