हिम न्यूज़ धर्मशाला। भारतीय संविधान एक भारत, श्रेष्ठ भारत के साथ विकसित भारत का रोडमैप भी है। इस संविधान में परम्परा और प्रगति को संतुलित रखने की सभी खूबियां मौजूद हैं। भारत की निरंतर प्रगति और युवाओं में विरासत के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता भारतीय संविधान की सफलता का प्रतीक हैं। यह बातें हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल ने अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित आम्बेडकर संवादमाला के उद्घाटन सत्र में कहीं। इस उद्घाटन सत्र में वह ‘अमृतकाल में अम्बेडकरीय चिंतन: प्रासंगिकता के विविध परिप्रेक्ष्य‘ विषय पर बोल रहे थे।

प्रो. बंसल ने कहा कि भारतीय संविधान अपने नागरिकों को अधिकार प्रदान करने के साथ कर्तव्यों के प्रति सजग रहने की अपेक्षा भी करता है। यह दुर्भाग्यर्पूण है कि अधिकरों के प्रति चेतना तो बढ़ी है, लेकिन कर्तव्यों के निर्वहन को लेकर सजगता उस गति से नहीं बढ़ी है। इस कारण, सामाजिक और राजनीतिक विमर्श में असंतुलन दिखाई पड़ता है। उन्होंने कहा कि संविधान दिवस एक नागरिक के रूप में अपने दायित्वों को निभाने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र एक चुनावी व्यवस्था भर नहीं बल्कि एक जीवनशैली है। और यह जीवनशैली नागरिक कर्तव्यों के बिना पूरी नहीं होती।
उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए विश्वभारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बिद्युत चक्रवर्ती ने कहा कि भारत में कई कारणों से आजकल विभिन्नता की बात बहुत होती है, इसके कारण राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही है। विभिन्नता के बजाय भारतीय विमर्श को विविधता पर केन्द्रित किया जाए तो पहचान सम्बंधी विषयों को सम्बोधित भी किया जा सकता है और राष्ट्रीय एकत्व को मजबूती भी प्रदान की जा सकती है।
प्रो. चक्रवर्ती ने कहा कि जोगेन्द्र नाथ मण्डल और डॉ. आम्बेडकर के चिंतन में एक मूलभूत अंतर था। अम्बेडकर ने अपने संघर्ष का लाभ बाहरी शक्तियों को नहीं लेने दिया, जबकि जोगेन्द्र नाथ मण्डल ने अपने संघर्ष को वाह्य शक्तियों से प्रभावित होने दिया। इसके कारण अनुसूचित जातियों को लेकर किया जाने वाला उनका संघर्ष तो प्रभावित हुआ ही, राष्ट्रीय एकता भी प्रभावित हुई। उन्हें जब सच्चाई का पता चला तो वह पाकिस्तान से भारत लौट आए और एक गुमनामी का जीवन जीने के लिए विवश रहे।
अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र के प्रभारी और सहायक आचार्य डॉ. किस्मत कुमार ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर व्यक्तिनिष्ठ नहीं, बल्कि ध्येयनिष्ठ थे। इसी कारण उन्होंने न केवल अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया बल्कि सामाजिक न्याय के विषय को मुखरता से रख सके। उन्होंने कहा कि डॉ. अम्बेडकर संवादमाला समसामयिक विमर्श को तथ्यपूर्ण बनाने और राष्ट्रबोध को सशक्त बनाने के उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया एक अकादमिक प्रयास है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के समाज विज्ञान स्कूल के अधिष्ठाता प्रो. संजीत सिंह सहित विभिन्न विभागों के संकाय सदस्य, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।