• देश की विविधता का ध्यान और सम्मान करे वित्तायोग-तंवर

हिम न्यूज़, शिमला :देश और दुनिया की सुरक्षा और विकास के लिए हिमाचल ने बहुत कुछ खोया है। छोटे से इस पहाड़ी राज्य ने अपने जल, जंगल और ज़मीन से मिलने वाले अपने राजस्व और संसाधनों को खोकर देश के लिए जो त्याग और योगदान दिया है उसका प्रतिबिम्बन वित्तीय आबंटन में नज़र नहीं आता। आबंटन के समय हिमाचल को छोटे राज्य के रूप में देखा जाता है। परन्तु वित्त आयोग और केन्द्र सरकार को देश की विविधता का सम्मान करते हुए आबंटन के समय ठोस परिस्थियों को भी ध्यान में रखना चाहिए। 16वें वित्तीय आयोग के हिमाचल दौरे पर प्रतिक्रिया देते हुए हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष और सेवानिर्वित अरण्यपाल डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने भाखड़ा और पौंग बांध सहित विभिन्न जल विद्युत परियोजनाओं में 6 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि में से 1 लाख कृषि भूमि कुर्बान की है जिसका लाभ बिजली और सिंचाई के रूप में मैदानी प्रदेशों को मिल रहा है। जबकि इस भूमि से विस्थापित अभी भी पुनर्स्थापन की बाट जोह रहे हैं।

डॉ. तँवर ने कहा कि वन सरक्षण कानून और नई वन नीति आने के बाद केन्द्र ने प्रदेश की 67 प्रतिशत बव भूमि अपने अधिकार में ले तो ली परन्तु इससे हर साल प्रदेश को जो 1000 करोड़ रुपये का राजस्व मिल रहा था उसकी एवज़ में कोई भी पैसा प्रदेश को नहीं मिल रहा। इसकी वजह से किसानों को मिलने वाली नौतोड़ भूमि से भी वंचित होना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि देश और दुनिया आज जलवायु परिवर्तन और भूमण्डलीय ताप से जूझ रही है लेकिन हिमाचल ने वन संरक्षण से अनुमानतः 7204 मीट्रिक टन कार्बन स्टॉक का भार अपने ऊपर लेकर पारिस्थितिकी के संतुलन में बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसका कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा है और न ही इस इकोसर्विस के लिए प्रदेश को कोई मुआवज़ा दिया जा रहा है।

डॉ. तँवर ने कहा कि मैदानी क्षेत्रों के लिए हिमाचल सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण जलागम क्षेत्र है क्योंकि वनों का सरक्षण करके हिमाचल जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भमिका निभा रहा है।

अपना जल, जंगल, ज़मीन खोकर भी अगर केन्द्र सरकार और वित्तायोग हिमाचल को उसी नज़रिये से देखेगा जो नज़रिया किसी अन्य राज्य के लिए है तो यह अदूरदर्शिता और अव्यवहारिकता होगी। हिमाचल छोटा राज्य भले ही है लेकिन इसकी चुनौतियां बड़ी हैं। इसका योगदान भी अन्य समान राज्यों से अधिक है।

डॉ. तँवर ने कहा कि पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को वित्तायोग को सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए और इस निर्णय की सराहना करनी चाहिए। उन्होंने हिमाचल किसान सभा की ओर से पर्यावरण संरक्षण, सम्वर्धन, इकोसर्विस और पारिस्थितिकी संतुलन में योगदान के लिए प्रदेश को अतिरिक्त ग्रांट और वित्तीय प्रावधान करने की मांग की है।हिमाचल किसान सभा

दिनांक: 25-06-2024

प्रैस विज्ञप्ति

 

• देश की विविधता का ध्यान और सम्मान करे वित्तायोग-तंवर

• वित्तीय आबंटन में हिमाचल के त्याग को रखा जाए नज़र में

• पर्यावरण संरक्षण, सम्वर्धन, इकोसर्विस और पारिस्थितिकी संतुलन में योगदान के लिए प्रदेश को मिले अतिरिक्त ग्रांट

 

देश और दुनिया की सुरक्षा और विकास के लिए हिमाचल ने बहुत कुछ खोया है। छोटे से इस पहाड़ी राज्य ने अपने जल, जंगल और ज़मीन से मिलने वाले अपने राजस्व और संसाधनों को खोकर देश के लिए जो त्याग और योगदान दिया है उसका प्रतिबिम्बन वित्तीय आबंटन में नज़र नहीं आता। आबंटन के समय हिमाचल को छोटे राज्य के रूप में देखा जाता है। परन्तु वित्त आयोग और केन्द्र सरकार को देश की विविधता का सम्मान करते हुए आबंटन के समय ठोस परिस्थियों को भी ध्यान में रखना चाहिए। 16वें वित्तीय आयोग के हिमाचल दौरे पर प्रतिक्रिया देते हुए हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष और सेवानिर्वित अरण्यपाल डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने भाखड़ा और पौंग बांध सहित विभिन्न जल विद्युत परियोजनाओं में 6 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि में से 1 लाख कृषि भूमि कुर्बान की है जिसका लाभ बिजली और सिंचाई के रूप में मैदानी प्रदेशों को मिल रहा है। जबकि इस भूमि से विस्थापित अभी भी पुनर्स्थापन की बाट जोह रहे हैं।

डॉ. तँवर ने कहा कि वन सरक्षण कानून और नई वन नीति आने के बाद केन्द्र ने प्रदेश की 67 प्रतिशत बव भूमि अपने अधिकार में ले तो ली परन्तु इससे हर साल प्रदेश को जो 1000 करोड़ रुपये का राजस्व मिल रहा था उसकी एवज़ में कोई भी पैसा प्रदेश को नहीं मिल रहा। इसकी वजह से किसानों को मिलने वाली नौतोड़ भूमि से भी वंचित होना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि देश और दुनिया आज जलवायु परिवर्तन और भूमण्डलीय ताप से जूझ रही है लेकिन हिमाचल ने वन संरक्षण से अनुमानतः 7204 मीट्रिक टन कार्बन स्टॉक का भार अपने ऊपर लेकर पारिस्थितिकी के संतुलन में बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसका कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा है और न ही इस इकोसर्विस के लिए प्रदेश को कोई मुआवज़ा दिया जा रहा है।

डॉ. तँवर ने कहा कि मैदानी क्षेत्रों के लिए हिमाचल सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण जलागम क्षेत्र है क्योंकि वनों का सरक्षण करके हिमाचल जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भमिका निभा रहा है।

अपना जल, जंगल, ज़मीन खोकर भी अगर केन्द्र सरकार और वित्तायोग हिमाचल को उसी नज़रिये से देखेगा जो नज़रिया किसी अन्य राज्य के लिए है तो यह अदूरदर्शिता और अव्यवहारिकता होगी। हिमाचल छोटा राज्य भले ही है लेकिन इसकी चुनौतियां बड़ी हैं। इसका योगदान भी अन्य समान राज्यों से अधिक है।

डॉ. तँवर ने कहा कि पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को वित्तायोग को सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए और इस निर्णय की सराहना करनी चाहिए। उन्होंने हिमाचल किसान सभा की ओर से पर्यावरण संरक्षण, सम्वर्धन, इकोसर्विस और पारिस्थितिकी संतुलन में योगदान के लिए प्रदेश को अतिरिक्त ग्रांट और वित्तीय प्रावधान करने की मांग की है।