हिम न्यूज़, शिमला: राज्य सरकार द्वारा आत्मनिर्भर हिमाचल के संकल्प को साकार करने की दिशा में हर क्षेत्र में नवोन्मेषी कदम उठाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में प्रदेश के कृषि विभाग ने पारंपरिक ढर्रे से हटकर नई सोच और आधुनिक दृष्टिकोण अपनाते हुए उल्लेखनीय पहल की है। अब कृषि विभाग के अधीन आने वाले कृषि फार्म केवल परंपरागत खेती तक सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि मांग और आपूर्ति के आधार पर नगदी फसलों की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं।
करसोग स्थित कृषि फार्म इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण बनकर उभरा है। यहां परंपरागत धान और गेहूं के साथ-साथ हल्दी और सोयाबीन जैसी नगदी फसलों की खेती का नया अध्याय शुरू हो चुका है। विभाग का उद्देश्य इन फार्मों को घाटे से उबारकर लाभ की स्थिति में लाना है, ताकि इन्हें एक आदर्श (मॉडल) के रूप में विकसित कर आम किसानों को भी नवाचार के लिए प्रेरित किया जा सके।
फार्म प्रभारी नरेश चंदेल के अनुसार करसोग कृषि फार्म में इस बार लगभग 5 बीघा भूमि पर हल्दी की खेती की जा रही है, जबकि 5 बीघा भूमि पर सोयाबीन की बिजाई पहले ही पूरी की जा चुकी है। इसके साथ ही करीब 7 बीघा क्षेत्र में पहली बार प्राकृतिक खेती की शुरुआत की गई है। प्राकृतिक खेती के माध्यम से मक्की की खेती की जा रही है। इसके अतिरिक्त कृषि फार्म में मास की खेती भी की जा रही हैं। यह एक महत्वाकांक्षी प्रयोग है, जिसका उद्देश्य किसानों को रसायन रहित खेती के प्रति जागरूक करना और उन्हें इस पद्धति से जोड़ना है।
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से जहां मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो रही है, वहीं उत्पादन लागत भी बढ़ रही है। ऐसे में प्राकृतिक खेती किसानों को कम लागत में टिकाऊ और स्वास्थ्यवर्द्धक उत्पादन का रास्ता दिखा रही है।
करसोग कृषि फार्म में इस वर्ष लगभग 75 बीघा भूमि पर विभिन्न फसलों की खेती की जा रही है। इनमें धान बीज उत्पादन की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। विभाग का लक्ष्य है कि यहां तैयार किए गए बीज किसानों तक पहुंचाकर उन्हें गुणवत्तापूर्ण और प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाए जाएं। इससे किसानों की उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और वे आर्थिक रूप से सशक्त हो सकेंगे।
फार्म प्रभारी बताते हैं कि हल्दी और सोयाबीन जैसी नगदी फसलें न केवल बाजार में अधिक मांग रखती हैं, बल्कि इनमें किसानों को बेहतर मूल्य भी प्राप्त होता है। विभाग इन फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर किसानों की आर्थिकी को सुदृढ़ करना चाहता है। साथ ही किसानों को नई फसलों के प्रति प्रोत्साहित कर उन्हें विविध फसलें अपनाने के लिए तैयार कर रहा है। कृषि फार्म में विभिन्न फसलों के डेमोंस्ट्रेशन की भी व्यवस्था की गई हैं। किसानों और स्कूली बच्चों को भी यहां कृषि संबंधी जानकारी प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
राज्य सरकार का यह प्रयास ‘व्यवस्था परिवर्तन’ के मूल उद्देश्य के अनुरूप है, जहां हर क्षेत्र में पारंपरिक सोच को आधुनिक दृष्टिकोण से बदला जा रहा है। कृषि क्षेत्र, जो राज्य की रीढ़ है, उसमें यह परिवर्तन न केवल आवश्यक है, बल्कि समय की मांग भी है।
करसोग कृषि फार्म की यह पहल निश्चित ही अन्य कृषि फार्मों के लिए प्रेरणा बनेगी। साथ ही यह किसानों को संदेश देगी कि नवाचार, विविधता और प्राकृतिक तरीकों को अपनाकर वे न केवल आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि राज्य की कृषि व्यवस्था को भी सशक्त बना सकते हैं।