हिम न्यूज़ धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित एमएमटीटीसी के “भारतीय ज्ञान प्रणाली (Indian Knowledge Systems – IKS)” विषयक अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के चौथे दिन विविध सत्रों में विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। इस दौरान डॉ. प्रशांत अर्वे द्वारा संचालित यह सत्र भारतीय ज्ञान परंपरा (IKS) को समाजशास्त्र, इतिहास, सांस्कृतिक अध्ययन और सभ्यतागत विश्लेषण के दृष्टिकोण से समझने का एक बहुआयामी प्रयास रहा।
उन्होंने चर्चा की शुरुआत रॉबर्ट पुटनम के ‘सोशल कैपिटल’ सिद्धांत से की, जिसमें पारस्परिक संबंधों, सामुदायिक विश्वास, परस्परता और सामूहिक सहभागिता को सामाजिक प्रगति की आधारशिला बताया । दूसरे सत्र में केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश में प्रो. वंदना शर्मा द्वारा प्रस्तुत यह सत्र भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ (IKS) और बहुभाषिकता विषय पर केंद्रित रहा। सत्र की शुरुआत में उनके विशिष्ट शैक्षणिक कैरियर, व्यापक शोध-प्रकाशनों और अनेक सम्माननों का परिचय दिया गया, जिससे भाषा अध्ययन, सांस्कृतिक विमर्श और IKS के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आई।
व्याख्यान के दौरान उन्होंने IKS के कई क्षेत्रों—जैसे आयुर्वेद, नाट्यशास्त्र, भाषाविज्ञान, पारिस्थितिकी, गणित और भारतीय व्याकरण परंपराओं—को और अधिक शोध के लिए उपयुक्त बताया। उन्होंने बहुभाषिकता को सांस्कृतिक ज्ञान के संरक्षण और संवहन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा को सर्वोत्तम बताया, क्योंकि भाषा और संस्कृति से जुड़ा हुआ शिक्षण ही वास्तविक समझ विकसित करता है।
अंत में, प्रो. वंदना शर्मा ने कहा कि स्वदेशी ज्ञान परंपराओं को पुनः स्थापित करना सांस्कृतिक सशक्तिकरण और बौद्धिक मुक्ति के लिए आवश्यक है। उन्होंने शिक्षकों, छात्रों और संस्थानों से भारतीय भाषाओं के संवर्धन, IKS के एकीकरण और भारत की सभ्यतागत ज्ञान धरोहर के पुनर्प्रतिष्ठापन में सक्रिय योगदान देने की अपील की। तीसरे सत्र में मुख्य वक्ता: प्रो. देबासीस साथापति ने महाभारत में प्रबंधन के पाठ शीर्षक से प्रस्तुत मुख्य व्याख्यान ने भारत के महानतम महाकाव्यों में से एक “महाभारत” को भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) के दृष्टिकोण से समझने का एक गहन और प्रभावशाली विश्लेषण प्रस्तुत किया।
वक्ता ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) से जुड़े बदलावों का उल्लेख करते हुए बताया कि आधुनिक भारतीय शिक्षा अब प्राचीन ज्ञान परंपराओं को पुनः मुख्यधारा में ला रही है। महाभारत, वेद, उपनिषद और विभिन्न शास्त्रों को नेतृत्व, संगठनात्मक व्यवहार, मानवीय मूल्यों और नैतिक निर्णय क्षमता को समझने के लिए पुनर्पाठित किया जा रहा है। इसी संदर्भ में वक्ता ने महाभारत के चार प्रमुख प्रसंगों के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रबंधन पाठ प्रस्तुत किए। चौथे सत्र-4 में मुख्य वक्ता: डॉ. चेतराम गर्ग ने भारतीय ज्ञान परंपरा तथा हिमाचल प्रदेश की देव परंपरा विषय पर अत्यंत ज्ञानवर्धक व्याख्यान आयोजित किया गया, जिसमें उन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली (Indian Knowledge Systems – IKS) की नींव, महत्व और समकालीन प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
उनका व्याख्यान भारत की दार्शनिक धरोहर पर आधारित था और इस बात की पड़ताल करता था कि पारंपरिक भारतीय ज्ञान आधुनिक समाज का मार्गदर्शन कैसे कर सकता है। आदरणीय चिंतकों, ग्रंथों और सांस्कृतिक परंपराओं के संदर्भों के माध्यम से उन्होंने IKS की एक समग्र समझ प्रस्तुत की तथा यह बताया कि आज के शैक्षिक और सामाजिक परिदृश्य में इसकी उपयोगिता कितनी महत्वपूर्ण है। गर्ग ने IKS को भारत में हजारों वर्षों में विकसित हुए ज्ञान के उस व्यापक भंडार के रूप में परिभाषित किया, जिसमें दर्शन, विज्ञान, भाषाविज्ञान, राजनीति, अर्थशास्त्र, कला, स्वास्थ्य-चिकित्सा, पर्यावरण और आध्यात्मिक परंपराएँ सभी सम्मिलित हैं। IKS केवल ग्रंथों या अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन, समाज की संरचना और प्रकृति के साथ मनुष्य के सामंजस्य को समझाने वाला एक समग्र ढांचा है।
उनके अनुसार, भारतीय सभ्यता ने सदैव ज्ञान को एक पवित्र साधना के रूप में देखा है। इसी दृष्टि से IKS भारत की प्राचीन बौद्धिक परंपराओं और आधुनिक वैश्विक ज्ञान को जोड़ने वाला सेतु बन जाती है। यह आलोचनात्मक चिंतन और आध्यात्मिक गहराई—दोनों को समान महत्व देती है तथा ज्ञान को केवल सूचना नहीं, बल्कि समग्र कल्याण का मार्ग मानती है।