हिम न्यूज़, शिमला। गद्दी छात्र कल्याण संघ हि.प्र. द्वारा बसोआ के अवसर पर खीर व पिंदड़ी का वितरण किया गया। गद्दी समाज में बसोआ त्योहार विशेष रूप से बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।यह बैसाख-सक्रांति का त्योहार है।
अतः नए वर्ष के नए त्योहार के लिए सम्पूर्ण तैयारियां पूर्ण कर ली जाती है। कुछ दिन पूर्व कोदरे के आटे को देसी ‘घराट’(चक्की) पर पीसकर बसोआ के दो दिन पूर्व एक कड़ाही या पात्र में उबले हुए पानी में कोदरे का आटा डाल दिया जाता है और कुछ समय के लिए उस आटे को गर्म पानी में रखा जाता है जब तक पककर घुल न जाएँ।अब उस आटे को कुनाले(परात) में थोड़ी मात्रा में गेहूं का आटा डालकर गुंथा जाता है और उसे किसी टोकरी में ऐरे(एक पौधा)या कैथ, अखरोट या बुरांश की पत्तियों की तह में बिछा दिया जाता है। इस आटे की गोल-गोल, किन्तु पिचकी हुई पिनियाँ बनाई जाती हैं और उन पिन्नियों को पत्तों से ढक दिया जाता है। टोकरी की हर तह पूरी होने पर उसमें खट्टी छाछ की बौछारें छोड़ी जाती है।
“बसोआ” दिवस के अवसर पर उक्त टोकरी को खोलकर देखने पर उनमें कुछ सफेदी छा गई होती है। अतः सक्रांति के दिन परिवार के समस्त लोग नहा-धोकर सगे-सम्बन्धियों तथा बहन-बेटियों को बुलाते हैं तथा इन्हें अपने प्रयोग करने से पूर्व सर्वप्रथम पितरों के निमित्त अर्पित किए जाते हैं उसके पश्चात परिवार के समस्त सदस्य शहद या गुड़ के पानी के साथ बड़े चाव से खाते हैं।
इस त्योहार के पूर्व घर के आँगन में गद्दी युवतियाँ और महिलाएँ समूह में एकत्रित होकर रात भर ‘बसोआ’ तथा ‘घुरैई’ गायन की अनुगूँज से सारे वातावरण को भाव-विभोर करती हैं।”बसोआ”वाले दिन विवाहित बेटियाँ अपने मायके जाने की प्रतीक्षा में रहती हैं। इस दिन सभी बहनें अपने मायके पहुँचकर अपने सम्बन्धियों से गले मिलते हुए कुशल-क्षेम पूछती हैं। शाम के समय समस्त बेटियाँ एकत्रित होकर ‘पिंदड़ी’ के लोक गाने गाकर एक दुःखी बहन की दुःखद गाथा को गाती हैं जिसके मर्म में किसी लड़की के ससुराल वालों से मिलने वाली यातनाओं का दिग्दर्शन होता है।
गद्दी छात्र कल्याण संघ हिमाचल प्रदेश की कार्यकारिणी द्वारा समस्त प्रदेश वासियों को बसोआ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।