कोटी में एक हजार वर्ष उपरांत सपंन हुआ कथेश्वर देवता का शांद महायज्ञ

हिम न्यूज़ शिमला । जुन्गा तहसील के कोटी में बीती सांय कथेश्वर देवता का शांद महायज्ञ कुरूड़ स्थापना और पारंपरिक पूजा अर्चना के साथ संपन हो गया । मंदिर के शिखर  पर कुरूड़ स्थापना कार्यक्रम शांद महायज्ञ में आए हजारों लोगों के प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहा । मंदिर समिति के प्रमुख कारदार रामस्वरूप शर्मा ने बताया कि करीब एक हजार  वर्ष  उपरांत  कथेश्वर देवता का शांद महायज्ञ क्योंथल रियासत के राजा खुश विक्रम सेन की अध्यक्षता में संपन हुआ ।

इस महायज्ञ में  देव जुन्गा धनचंद ठूंड, कथेश्वर देवता डवारू के अतिरिक्त कथेश्वर  देवता की करीब 200 जुबड़ियों और  विभिन्न खैल अथवा खानदान के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों देवी देवताओं के कारदारों  ने भाग लिया ।

उन्होंने बताया कि कथेश्वर देवता के प्राचीन मंदिर का जीर्णोंद्धार करने के बाद शांद महायज्ञ करवाया गया है  । इस दौरान देवता की मूर्तियों को अस्थाई तौर पर कोटी में तत्कालीन क्योंथल राजा की पौल के पास रखी गई थी । यह कार्यक्रम 24 नवंबर को  प्रारंभ होकर 03 दिसंबर को संपन हुआ । जिसमें दो दिसंबर को सांय छः बजे कुरूड.स्थापित किया गया । जबकि 3 दिसंबर को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा व विशेष पूजा और पूर्णाहुति डाली गई ।

सयाणा राम स्वरूप शर्मा ने बताया कि शांद महायज्ञ में पूजा का कार्य आचार्य दिनेश शर्मा व भगवान दत्त शर्मा द्वारा किया गया । इसमें देवता धनचंद,  जय ईश्वरी देवी (धरेच), ठूंड के सभी देवठियों के करादार, देवता जुन्गा (पुजारली), चायल-टिक्कर के कारदार, तारादेवी, कुशाला व मुंडाघाट सहित कई देवताओं के कारदार शामिल हुए । उन्होंने बताया कि अतीत में तत्कालीन क्योंथल रियासत का मुख्यालय हुआ करता था जिसे  बाद में जुन्गा स्थानातंरित किया गया था ।

शांद महायज्ञ में देवता के भंडारी सोम प्रकाश व श्री निवास, देवा अथवा गुर गीता राम और नरायण दत्त, सयाणे राम स्वरूप शर्मा और देवेन्द्र ठाकुर, सरजाई बाला राम शर्मा और सुरेश शर्मा ने प्रमुख भूमिका निभाई । इस मौके पर राजा खुश विक्रम सेन, राजमाता विजय ज्योति सेन, ग्रामीण विकास मंत्री अनिरूद्ध सिंह ने देवता की पूजा अर्चना की।

कथेश्वर देवता का इतिहास

सर्व शक्ति मान कथेश्वर देवता महाराज की उत्पत्ति नेपाल देश से हुई। हजारों वर्ष पूर्व गोरखों ने  क्योंथल रियासत पर आक्रमण करके राजा को नेपाल में कैद किया गया था । बताते हैं कि राजा ने नेपाल में कार्तिकेश्वर अथवा कलथेवर की जातर को देखा और देवता से कैद मुक्त करने की कामना की । देवता की कृपा से राजा कैद से मुक्त हुए और आते हुए क्योंथल राजा कथेश्वर देवता को साथ लाए थे जिसकी स्थापना अपनी राजधानी कोटी में की गई थी ।

प्राचीनकाल में क्योंथल रियासत के राजा ने  क्योंथल रियासत में इस देवता की स्थापना करके उसे गई अपने राज्य में राज दिया गया था । जातर स्वरुप यात्रा क्योंथल रियासत में राजा के ज्येष्ठ पुत्र(टीका) की उत्पत्ति पर व राज्य अभिषेक के समय के पश्चात का विधान बनाया गया। इस देवता के विशेष कल्याणें कटलेड़ू व टकराल खानदान के लोग हैं। अन्य खानदान के घरों में इसे चांगड़ू देवता के रुप में मानते हैं। लोगों की इस देवता में बहुत आस्था व श्रद्धा है ।