राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने आज हमीरपुर स्थित एनआईटी में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा आयोजित ”शिक्षा का अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय शिक्षा नीति“ विषय पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए और उसे यह अधिकार प्रदान करने में सहयोग करना हमारा नैतिक दायित्व है।
उन्होंने कहा कि छात्रों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी) तैयार की गई है। उन्होंने कहा कि अब तक देश में शिक्षा के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास पर बातचीत हुई है, लेकिन वास्तव में छात्रों के व्यक्तिगत विकास पर कोई वास्तविक कार्य नहीं किया गया है।
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की इस पहल का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी को न केवल साक्षर होने बल्कि सही मायने में शिक्षित होने की जरूरत है, जो कार्य एक कमरे में नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति इस दिशा में बल देती है।
आर्लेकर ने कहा कि व्याकरण के आधार पर कोई भाषा नहीं सिखाई जा सकती। सुनने से ही व्यक्ति भाषा सीखता है। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में श्रुति पर अधिक बल दिया गया है।
इस शिक्षा नीति को पढ़ने की जरूरत है और इस मामले में सुझाव आमंत्रित किए जाने चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि आज गुणात्मक शिक्षा पर चर्चा होती है लेकिन केवल बुनियादी ढांचे का विकास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं है।
राज्यपाल ने कहा कि नारी को शिक्षा का अधिकार हमारी प्राचीन संस्कृति में था। उन्होंने कहा कि यहां शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा था जो गुरुकुल प्रणाली पर आधारित था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयता को नष्ट करने के लिए देश में एक बड़ी साजिश रची गई और अंग्रेजों द्वारा लाई गई शिक्षा नीति हमारी राष्ट्रीयता को नष्ट करने वाली थी।
आज इतिहास बदल रहा है और यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ही परिणाम है, जो देश और संस्कृति से जुड़ा है। आर्लेकर ने कहा अगर इस दिशा में हम कुछ नहीं कर सकते हैं, तो आने वाले कल में किसी और को दोष नहीं दिया जा सकता।
उन्होंने कहा कि इसे हिमाचल प्रदेश में लागू किया जा रहा है और सरकार भी इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रही है।