अविनाश राय खन्ना ने हिमाचल प्रदेश में नशे के बढ़ते खतरे पर चिंता व्यक्त की

हिम न्यूज़ ,शिमला-भाजपा के पूर्व प्रदेश प्रभाती अविनाश राय खन्ना ने कहा की देश और प्रदेश में नशा एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है, जिसके खिलाफ समाज और प्रत्येक व्यक्ति को युद्ध लड़ना पड़ेगा। नशा हमारी वर्तमान एवं आने वाली पीढ़ी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, अगर नशे को आज नहीं रोक गया तो प्रदेश का युवा इसमें बर्बाद हो जायेगा। उन्होंने कहा कि हम सबको मिलकर इस विषय पर ड्राइव शुरू करनी होगी जिसमें सभी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, निजी कोचिंग सेंटर, निजी संस्थानों में जा कर इस विषय तो संगोष्ठी के रूप में लोगों तक पहुंचाना होगा।
खन्ना ने कहा कि इस विषय को लेकर कुछ रोज पूर्व मैं स्वयं हिमाचल के माननीय राज्यपाल शिव प्रताप शुल्क से मिला था और इस विषय पर चर्चा की थी। राज्यपाल जी भी नशे के बढ़ते प्रभाव को लेकर काफी चिंतित है, पड़ोसी राज्यों से भी नशा काफी बड़ी मात्रा में प्रदेश में आ रहा है। राज्यपाल जी ने नेता प्रतिपक्ष एवं मुख्यमंत्री को इस नशे की लड़ाई के खिलाफ एक मंच पर आने को कहा है जिससे समाज को एक सकारात्मक संदेश जाएगा, यह लड़ाई राजनीतिक नहीं बल्कि समाजसुधार की है। खन्ना ने कहा हिमाचल प्रदेश में तीन वर्षों में नशाखोरों के खिलाफ 5332 मामले दर्ज किए गए हैं। इसमें 520 अभियोग अन्वेषणाधीन और 4627 न्यायालय में विचाराधीन हैं। 185 मामलों का निपटारा न्यायालय की ओर से कर दिया गया है। इन मामलों में से 111 मामलों में सजा और 74 मामलों में आरोपी बरी हुए हैं। कुल 5332 अभियोगों में 8004 आरोपी गिरफ्तार किए गए। 2355 आरोपियों को पुलिस ने नोटिस देकर छोड़ा, 96 कोर्ट से बरी हो चुके हैं। 5554 आरोपियों को जेल भेजा गया है। प्रदेश को नशामुक्त करने के लिए केंद्र सरकार से सहयोग मांगा गया है।
उन्होंने कहा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2047 में एक पूर्ण विकसित भारत के निर्माण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नशामुक्त भारत की सिद्धि बहुत जरूरी है। मादक पदार्थों के खिलाफ लड़ाई में केंद्र सरकार और राज्य सरकार को एक साथ एक मंच पर आना होगा। देश में वर्ष 2004 से 2014 के बीच दस साल में नष्ट किए गए ड्रग्स का मूल्य 8,150 करोड़ रुपये था, जो पिछले 10 वर्ष में बढ़कर 56,861 करोड़ रुपये हो गया है। इसका अर्थ यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि ड्रग्स का उपयोग बढ़ रहा है, बल्कि अब उस पर कार्रवाई हो रही है और परिणाम भी मिल रहे हैं।

सांसद सुरेश कश्यप ने आईजीएमसी मौत मामले को लेकर सरकार पर निशाना साधा

 भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने कहा कि प्रदेश सरकार को हिमाचल की जनता बारे कोई चिंता नहीं है, उनकी तरफ से जनता की जान की कोई कीमत नहीं है। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज के एक कैंसर रोगी की मौत के बाद मामला सीएम हेल्पलाइन में पहुंच गया है। जिससे हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खुल गई। सीएम हेल्पलाइन को दी शिकायत में परिजनों ने इंजेक्शन न मिलने से रोगी की मौत होने का आरोप लगाया है। यह प्रदेश सरकार के लिए शर्म की बात है, पूर्व भाजपा सरकार ने अनेकों ऐसी योजनाओं की शुरुआत की थी जिसे जनता को बहुत फायदा हुआ था। जेब में एक रु भी ना हो तब भी व्यक्ति अपना इलाज करवा सकता था पर, शायद इस सरकार को वह जनकल्याणकारी योजनाएं पसंद नहीं आई।
उन्होंने कहा कि कैंसर रोगी हिमकेयर योजना के तहत पंजीकृत था लेकिन अस्पताल में रोगी को इंजेक्शन नहीं मिला। बीते माह रोगी की मौत हो गई थी। रोगी की बेटी जाह्नवी शर्मा ने सीएम हेल्पलाइन पर इस संबंध में शिकायत की है। आरोप है कि हिमकेयर में पंजीकृत होने और उसमें राशि होने के बावजूद उसके पिता देवराज को इंजेक्शन नहीं मिला। जाह्नवी ने सीएम हेल्पलाइन पर इस कोताही के लिए जिम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है। भाजपा मृतक के परिवार के साथ है, सरकार द्वारा हस्पताल प्रशासन के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।
मृतक के परिवारजनों ने आरोप लगाया है कि उनके पिता को आईजीएमसी के डॉक्टर ने 13 नवंबर को एक जरूरी इंजेक्शन लगवाने के लिए कहा था। आईजीएमसी प्रबंधन के बार-बार चक्कर काटने के बाद भी इंजेक्शन नहीं मिला। इंजेक्शन की कीमत करीब 50 हजार रुपये थी। परिवार की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं है कि वह इंजेक्शन खरीद पाए। लिहाजा 3 दिसंबर को उनके पिता की मौत हो गई। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (आईजीएमसी) में मरीजों की एंजियोग्राफी बंद हो गई है। इस वजह से कार्डियोलॉजी विभाग में उपचार करवाने आ रहे मरीजों को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है। हिम केयर और प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना के तहत मरीजों का पांच लाख तक मुफ्त में उपचार होता है। लेकिन मेडिकल स्टोरों के संचालकों को इन योजनाओं के लंबित बिलों का भुगतान न होने से संचालकों ने अब सामान देने से मना कर दिया है। इस कारण आईजीएमसी में एंजियोग्राफी बंद हो गई है। इन मरीजों के चिकित्सकों ने केस बना रखे थे लेकिन एंजियोग्राफी बंद होने से अब उनके केस रद्द करने पड़े हैं।