हिम न्यूज़ शिमला। प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के दोबारा खोले जाने की चर्चा और इस सम्बन्ध मे पी एम ओ की अनुमति के लिए भेजे गए प्रस्ताव की छपी खबर ने राज्य के कर्मचारी वर्ग को चिंता मे डाल दिया है कि आखिर माननीय उच्च न्यायालय से बेहतर कोई दूसरी व्यवस्था कैसे कारगर और न्यायप्रिय साबित हो सकती है। इस पर मुख्यमन्त्री सुखविंदर सिंह को ऐसा कोई भी फैसला लेने से पहले इसके सभी पहलूओं पर गंभीरतापूर्वक और संवेदनशीलता से विचार करना होगा।
प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के अनुभव यह बताते है कि कर्मचारी-मजदूर वर्ग को न्याय देने के नाम पर बनाई गई यह व्यवस्था सेवानिवृत्त नौकरशाहों को एडजेसट करने और कुछ राजनीतिक नियुक्तियों के लिए एक मंच प्रदान किया गया था जो कर्मचारी-मजदूर वर्ग के लिए एक सफेद हाथी साबित हुआ है, इसके बंद होने के यही मूल कारण है और यह फैसला पूर्व सरकार ने कर्मचारी वर्ग के लिखित ज्ञापन पर लिया है इसलिए इसे किसी पार्ट विशेष का मुद्दा न बनाया जाए।
यह राज्य के कर्मचारी वर्ग के हित मे लिया गया फैसला है और इससे सरकार को भी कोई लाभ नही होने वाला है, उल्टे प्रदेश पर लगभग 100 करोड तक का सालाना अतिरिक्त वित्तीय बोझ का भार पड़ेगा और वर्तमान हालत यह है कि दो साल से डी ए की किश्तें लम्बित हैं तो ऐसी परिस्थित मे ऐसे सफेद हाथी किसी भी तरह से हितकर नहीं है।
हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ के अघ्यक्ष विनोद कुमार कार्यकारी अध्यक्ष गोविन्द सिंह ब्रागटा अतिरिक्त महासचिव विनोद शर्मा ने कहा है कि पूर्व भाजपा की सरकार मे उस समय के बडे नौकरशाह श्रीकांत बालदी और मनीषा नंदा अपनी सेवानिवृत्ति के नजदीक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल मे नियुक्ती के इंतजार मे थे और दोनो नौकरशाह मे काफी दिलचस्प जंग थी, लेकिन महासंघ उस समय इनके विरोध मे था और ट्रिब्यूनल को भंग करने की मांग कर रहा था ।
महासंघ के इस विरोध और मांग के बीच पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव मनीषा नंदा ने फोन कर विनोद कुमार से आग्रह किया कि आप इसके भंग करने की मांग न करो मेरी वंहा नियुक्ति फैनल हो चुकी है और मै फलां तिथि को शपथ ले रही हूँ और आप ट्रिब्यूनल के सशक्तिकरण की मांग रखो। लेकिन कर्मचारी वर्ग से राय आने के बाद महासंघ ने सरकार को इसे भंग करने का ज्ञापन दिया, चूंकि इससे पहले भी जब पूर्व कांग्रेस सरकार ने इसे खोलने का फैसला किया था तो उस समय भी इसका लिखित विरोध कर्मचारी-मजदूर वर्ग की तरफ से तत्कालीन मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनकी कैबिनेट को दिया गया और उस विरोध के चलते सरकार ने केबिनेट के फैसल को दो साल तक विचाराधीन रखा।
महासंघ के नेताओ ने मुख्यमन्त्री से आग्रह किया है कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल किसी भी सूरत मे न थोपा जाए, यह किसी भी तरह से हितकर नही है। पड़सी राज्य पंजाब हरियाणा जंहा हिमाचल से दोगुना कर्मचारी-मजदूर वर्ग की संख्या है वंहा भी उच्च न्यायालय ही है ।
सरकार अपने स्तर पर ऐसी व्यवस्था कर सकती है जिससे लिटिगेशन कम हो और इसका बेहतर सुभाव और व्यवस्था जो देश के पहले प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने दी थी वह सरकार के समक्ष रखी जाएगी। इस विषय मे मुख्यमन्त्री से मिला जाएगा। आवश्यक हुआ तो यह विषय महामहिम राज्यपाल और पी एम ओ के समक्ष भी रखा जाएगा।